Wednesday, September 14, 2011

बम-ब्लास्ट


कितने मरे? कितने घायल हुए?
कहा कहा और धमाके हुए?
चर्चा का दौर खतम हो गया
हर कोइ सब कुछ भुल गया,
काम अपना हम करते रहे
बम-ब्लास्ट होते रहे.

कोइ कहता है लोकल  है
किसी को डाउट विदेशी पे है,
कही कडक कदम की बात है
हर कोइ यहा कंफ्युझ्ड है,
हम सब की सुनते रहे
बम-ब्लास्ट होते रहे.

जब 9/26 का हमला भया
ग्रुह मंत्री घर गया,
नये दफ्तर, और मंत्री नये
आश्वासन बहुत दीये गये,
लेकिन फिर सब सो रहे
बम-ब्लास्ट होते रहे.

ब्रिटन-यु.एस. मे हमले नही
लोगो को किसीका डर नही,
इंडिया बन गया खुला खेत
जब जी चाहे वो कर देत,
नेताजी भाषण दे रहे
बम-ब्लास्ट होते रहे.

बम-ब्लास्ट जब होते है
आम लोग ही मरते है,
जब कोइ खास मरेगा
तब तंत्र कुछ करेगा,
इंतझार हम कर रहे
बम-ब्लास्ट होते रहे.

Thursday, September 8, 2011

चुनाव जीत गया !


तु कौन? चल दुर हट, अब मै चुनाव जीत गया,
अब मुजे मत बुलाओ, अब मै चुनाव जीत गया.

कल तक झुक झुक कर, प्रणाम तुजे मै करता था,
अब तु मेरे पांव पकड, अब मै चुनाव जीत गया.

मिलेगी सरकारी खर्चेसे, झेड केटेगरी सुरक्षा मुजे,
अब किसीका डर नही, अब मै चुनाव जीत गया.

आम आदमी लडता रहे, महंगाइ और भ्रष्टाचार से,
मेरा क्या लेना-देना, मै तो चुनाव जीत गया.

ओह, जरा गलती हो गइ, आदत से मै मै कर गया,
अब तो ‘बडा’ आदमी है हम, अब ‘हम’ चुनाव जीत गया.

Wednesday, August 10, 2011

नेता



पता नही कितना गहरा है, पेट उनका भरता  नही,
सब कुछ खाये जा रहा है, ना कभी वो करता  नही.

तोप, चारा, स्पेक्ट्रम, खेल;  धन, धान्य और कच्चा तेल,
बेशरम सब कुछ खा गया, वो  किसीसे डरता नही.

वचन-वायदे तो बहुत किये थे, वोट लेने जब आये थे,
अब जनता का काम करने मे, मन उनका लगता नही.

सीधा सादा आम आदमी था, जब वो नेता बना नही था,
लेकिन जबसे चुनाव जिता हे, पाँव जमीं पर रखता नही.

उनके बारेमे अब क्या कहे, हम अपनी मर्यादामे रहे,
डरता है, इसलिये यमराज भी, प्राण उनके हरता नही.


Tuesday, May 10, 2011

खून !


पता नही पहले से ऐसा था या नही,
अब तो पानी ही हो गया है खून हमारी रगो मे.

वक्तकी चाल चलता गया,
कतरा कतरा बदलता गया,
कभी लाल, कभी हरा, पीला, काला,
अब तो बेरंग ही हो गया, खून हमारी रगो मे.

सहनशीलता, मजबुरी या फिर कायरता,
जो चाहो कहो,
इतना ठंडा हो गया अब,
कभी गरम ही नही होता, खून हमारी रगोमे.

जिसने चाहा, जब-जैसे चाहा
सताया, लताडा, लूंटा हमें
पडा रहा दिल के नर्म कोने मे
आया ही नही, खून हमारी रगो मे.

इमान, धरम, देशप्रेम  और क्या क्या
पढा था कभी किताबो मे
अब तो बस हरी पती देख कर
दौडने लगता है, खून  हमारी रगो मे.

देखता हु आंखोसे, सुनता हु कानो से,
महसूस लेकीन कुछ नही होता,
दीमाग तो अलग ही हो गया खुद से,
बर्फ बन के ज़म गया, खून हमारी रगो मे.

Wednesday, April 20, 2011

कवि लोग / કવિઓ


एक काव्य-ब्लोग पर मैने कुछ पढा
और पढ के मैने ये काव्य लिखा :

बाप रे बाप, क्या कर रहे है ये कवि लोग,
समज मे नही आता क्या लिख रहे है ये कवि लोग.

वैसे तो कुछ खास नही पीते वो लोग,
फिर कौनसे नशेमे धूत रहते  है ये कवि लोग.

सुंदरी तो दूरकी बात, गौर गधी पर भी,
गहन गझल खिंच देते है ये कवि लोग.

आडा-तेडा, ऐसा-वैसा और कैसा भी लिख कर,
खुद ही परेशान हो रहे  है ये कवि लोग.

ऐसा लिख कर, और फिर उसे प्रकाशीत कर,
अक्षर का आतंकवाद फैला रहे हे कवि लोग.


ઉપરોક્ત કવિતાનો ગુજરાતી અનુવાદ


બાપરે બાપ! શુ કરે છે આ કવિઓ,
સમજાતુ નથી, શુ લખે છે આ કવિઓ.

આમ તો ખાસ કઇં નથી પીતા એ લોકો,
તો શાના નશામા મ્હાલે છે આ કવિઓ?

છોકરીતો છોડો, ગોરી ગધી પર પણ,
ગઝલો ઢસડી નાંખે છે આ કવિઓ.

આડુ, અવળુ, વિચિત્ર લખી લખી ને,
ખુદને પણ મુંઝવી મારે છે આ કવિઓ.

આવુ લખી અને પાછુ પ્રકાશીત કરીને,
અક્ષરનો આતંકવાદ ફેલાવે છે કવિઓ.


Thursday, April 14, 2011

તમારા સમ !


આવો તો વેલકમ, જાવ તો ભીડ કમ,
હવે આગળ ન વાંચો તો તમને તમારા સમ.

શાને હુ આપુ તને કિંમતી આ મારો વોટ
વચનોમા તારા મને  નથી કંઇ લાગતો દમ.

આમતો દારુબંધી છે ગાંધીના ગુજરાતમા
પણ જોઇએ ત્યા મળે છે વોડકા, વ્હિસ્કી ને રમ.

માન, મર્યાદા, સમયનુ બંધન બધુ જ સહ્યુ
બાપા ગયા ઉપર, હવે મન ફાવે ત્યા ભમ.

લાશો પર ડગ મુકી બહુ આગળ વધી ગયો તુ,
શંકા જાય છે મને,  માણસ જ છે કે  છે તુ જમ?

Wednesday, March 9, 2011

मा, मुजे मार ही डाल.....


प्रथम खंड  : ‘बेटी’ है, गर्भपरिक्षण मे पाया गया 
           मा-बाप(!)ने गर्भपात का निश्चय किया.


बेटी हु,

तो क्या इस दुनिया मे आ नहि शकती?
माता-पिता का प्यार पा नहि शकती?,
दोष मेरा क्या है अगर मै लडका नही
क्या मै तेरी इच्छा का फल नही?,
      मै तेरे ही बाग का फूल, मा मुजे मत मार.
    
गोदमे तेरी खेलुंगी तेरी गुडिया बनकर
किलकिलाहट से भर दुंगी तेरा ये घर,
तेरा ही रूप, मै तेरी ही परछाई हु
दामन मे अपने तुजे ही समेटके लाइ हु,
      मै हु तेरा ही अंश, मा मुजे मत मार.

कह्ते है मां तो इश्वरका रूप होती है
और  मुजसे ही तो मां बनती है,
अगर मुजे ही नही अपनाओगे
तो इश्वर को कहा से पाओगे?,
      मै इश का वरदान, मा मुजे मत मार.

चुपचाप सब सह लुंगी मुजे जीने दे
जिवनकी एक सांस मुजे भी लेने दे,
कुदरतने बनायी है ये धरती सबके लिये
फिर मेरे साथ ये नाइंसाफी किस लिये?,
      मै एक नन्ही सी जान, मा मुजे मत मार.

मा, तु भी तो बेटी बनकर ही आइ थी
ममता और करुणा साथ मे ही लाइ थी,
आज इतनी निर्दयी कैसे हो गइ?
नारी ही नारी की दुश्मन हो गइ?,
       मै तो दो घर की ‘शान’, मा मुजे मत मार.


दुसरा खंड : ‘बेटी’की काकलूदी सुनी नही गई
           गर्भपातकी सारी तैयारिया हो गई.

अफसोस, मनुष्य के गर्भ मे आ गइ
जिंदगी से पहले ही मौत गले लगा गइ,
काश, अगला जन्म कोइ पशुका मिले
जिंदगी जीनेका एक मौका तो मिले,
      मै अबला और लाचार, मा मुजे मत मार.

शायद अच्छा ही होगा अगर मर जाउंगी
चलो इस स्वार्थी दुनिया से तो बच जाउंगी,
मुझे किसीकी मा, बहन, बीवी नही बनना
’बेटो’ के लिये बनी दुनिया मे ‘बेटी’ नही बनना,
     नही बनना मुझे इंसान, मा मुजे ...........



Thursday, February 3, 2011

क्रि के ट ज्व र


चिंता छोडो, सुख से जीओ, अब वर्ल्ड कप आ गया,
अब नही कोइ फरियाद, क्रिकेट का वर्ल्ड कप आ गया.

बच्चा ‘प्रिलिम’ परिक्षा मे पास हुआ था या फैइल, याद नही,
सचिन-धोनी का ‘स्कोर’ हमे है याद, वर्ल्ड कप आ गया.

दफ्तरमे जरूरी ‘फाइलो’के ढेर लगे है? ‘नो प्रोब्लेम’,
घर बैठे देखो रमत ये महान, वर्ल्ड कप आ गया.

आदर्श, ‘स्पेक्ट्रम’ वाले गुंडे जा रहे है देश को लुंट कर,
हम तो है ‘क्रिकेट’मे गुलतान, वर्ल्ड कप आ गया.

‘बजेट’मे पता नही कहा कहा से वो जेब काट लेंगे?
सोचुंगा दो अप्रैल  क़ॆ बाद, वर्ल्ड कप आ गया.

सोते जागते मुजे दिख रहे है सिर्फ ‘क्रिकेटरो’ के चहेरे,
’शीला’, ‘मुन्नी’ का अब नही कोइ काम, वर्ल्ड कप आ गया.

बच्चा रो रहा है, बीवी बुला रही है, दोस्तका फोन है,
जवाब दुंगा ‘मेच’के बाद, वर्ल्ड कप आ गया.

मरनेका मुजे कोइ डर नही लेकीन ‘मेच’ सारे देखने है,
ठहर जा तु यमराज, अब तो वर्ल्ड कप आ गया.


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"BEYOND CRICKET" on

Monday, January 31, 2011

ગ ગ ન વિ હા ર / गगन विहार



સાવ સહેલુ છે, કવિતા તો તમે પણ લખી શકો છો,
માત્ર શબ્દોની લડાઇ છે આ, તમે પણ લડી શકો છો.

કવિઓનુ ‘આગવુ ભાવવિશ્વ’ એવુ કશુ નથી હોતુ,
મફત છે, કલ્પનાઓ તો તમે પણ કરી શકો છો.

શોધી કાઢી થોડા ક્લિષ્ટ  શબ્દો શબ્દકોષ મહિથી,
પછી એની માયાજાળ તો ગુંથી તમે પણ શકો છો.

થોડુ અહિથી, થોડુ તહિથી અને થોડુ કહિથી ઉઠાવીને,
એક નવી જ રચના તો તમે પણ રચી શકો છો.

છંદ, પ્રાસ વગેરેનો મેળ નથી? ચિંતા ના કર યાર,
’અછંદસ’ જેવુ કઇક તો તમે પણ લખી શકો છો.  

અને કવિ જેવો દેખાવ કરવો તો સાવ સરળ છે, 
લેંઘો-ઝ્ભ્ભો ને ખભે થેલાનો વેશ તો તમે પણ ધરી શકો છો. 



उपरोक्त काव्य का हिन्दी अनुवाद

बहुत ही आसान है, कविता तो आप भी लिख शकते हो
सिर्फ शब्दोकी लडाइ है, ये तो आप भी लड शकते हो .

कविओ का विशेष भावविश्व ऐसा कुछ नही होता,
मुफ्त है, कल्पनाए तो आप भी कर शकते हो.

थोडा यहा से, थोडा वहा से और थोडा कही से उठाके,
एक नइ ही रचना तो आप भी रच शकते हो .

छंद, प्रास का पता नही? कोइ चिंता नही यार,
अछांदस जैसा कुछ तो आप भी लिख शकते हो.

और कवि जैसा दीखना तो बिल्कुल आसान है,
जींस पे कुर्ता और बिखरे बाल तो आप भी धर शकते हो.
 



Saturday, January 29, 2011

કો ણ છે?


અવકાશમાથી એક અવાજ આવ્યો, ‘એય, તુ કોણ છે?'
હુ તો સાવ થિજી ગયો, આવુ પુછ્નાર આ કોણ છે?

આખી જીન્દગી હુ તો બસ આમ જ બિન્દાસ જિવ્યો છુ
હવે આખરી પળે મને રોકનાર આ કોણ છે?

મારા અસ્તિત્વને મે તો ક્યારનુ ય ભુલાવી દીધુ છે
જુના ઝખ્મો ફરી ખુરેદનાર હવે આ કોણ છે?

મે તો માની લીધુ હતુ કે હવે હુ એક જ બચ્યો છુ
બીજુ કોઇ પણ છે અહિ, એવુ કહેનાર આ કોણ છે?

ખડીયો નાખ ખભે અને ચાલતો થા ‘નવિન’ તુ, 
તારા સિવાય આવુ પુછ્નાર હવે અહિ કોણ છે?



Friday, January 28, 2011

अ के ला - च ल


तुम्हे क्या हुआ, रो क्यु रहे हो?
साथी छुट गया? रो क्यु रहे हो?

सब मुसाफिर है, चलते चले जाएंगे,
तुम एक ही जगह पे रुके क्यु रहे हो?

कल अच्छा था? होगा, भुलो उसे,
जो छोड दिया वो देख क्यु रहे हो?

तुम्हारी झिन्दगी सिर्फ तुम्हारी है,
किसी के हवाले कर क्यु रहे हो?

अकेले चलो, न करो आश किसीकी,
जो नही है, उसे साथ ले क्यु रहे हो?


उ डा न


बादलो पे कदम रखे है, आसमान को छु लिया है
मंझील तो बहुत दूर है अभी, सफर शुरु कर लिया है ।

बिता कल क्या था, कैसा था, हम ने सब भुला दीया है
चांद पकडना तय किया है, रास्ता हम ने बना लिया है ।

राह कठीन है, मुश्किल है, मालुम हमे सब कुछ है
अंधेरो का डर नहि अब, सुर्य को हम ने साथ लिया है ।

लो, रास्ता तो खत्म हो गया, लोग हमे बताते है
मेरु मध्ये मार्ग बनाना, लेकिन हमने तय किया है ।

खुली आंख का सपना ये है, उसे सच बनाना है, 
काम कोइ मुश्किल नही अब, साथी तुमे बना लिया है ।