Wednesday, March 9, 2011

मा, मुजे मार ही डाल.....


प्रथम खंड  : ‘बेटी’ है, गर्भपरिक्षण मे पाया गया 
           मा-बाप(!)ने गर्भपात का निश्चय किया.


बेटी हु,

तो क्या इस दुनिया मे आ नहि शकती?
माता-पिता का प्यार पा नहि शकती?,
दोष मेरा क्या है अगर मै लडका नही
क्या मै तेरी इच्छा का फल नही?,
      मै तेरे ही बाग का फूल, मा मुजे मत मार.
    
गोदमे तेरी खेलुंगी तेरी गुडिया बनकर
किलकिलाहट से भर दुंगी तेरा ये घर,
तेरा ही रूप, मै तेरी ही परछाई हु
दामन मे अपने तुजे ही समेटके लाइ हु,
      मै हु तेरा ही अंश, मा मुजे मत मार.

कह्ते है मां तो इश्वरका रूप होती है
और  मुजसे ही तो मां बनती है,
अगर मुजे ही नही अपनाओगे
तो इश्वर को कहा से पाओगे?,
      मै इश का वरदान, मा मुजे मत मार.

चुपचाप सब सह लुंगी मुजे जीने दे
जिवनकी एक सांस मुजे भी लेने दे,
कुदरतने बनायी है ये धरती सबके लिये
फिर मेरे साथ ये नाइंसाफी किस लिये?,
      मै एक नन्ही सी जान, मा मुजे मत मार.

मा, तु भी तो बेटी बनकर ही आइ थी
ममता और करुणा साथ मे ही लाइ थी,
आज इतनी निर्दयी कैसे हो गइ?
नारी ही नारी की दुश्मन हो गइ?,
       मै तो दो घर की ‘शान’, मा मुजे मत मार.


दुसरा खंड : ‘बेटी’की काकलूदी सुनी नही गई
           गर्भपातकी सारी तैयारिया हो गई.

अफसोस, मनुष्य के गर्भ मे आ गइ
जिंदगी से पहले ही मौत गले लगा गइ,
काश, अगला जन्म कोइ पशुका मिले
जिंदगी जीनेका एक मौका तो मिले,
      मै अबला और लाचार, मा मुजे मत मार.

शायद अच्छा ही होगा अगर मर जाउंगी
चलो इस स्वार्थी दुनिया से तो बच जाउंगी,
मुझे किसीकी मा, बहन, बीवी नही बनना
’बेटो’ के लिये बनी दुनिया मे ‘बेटी’ नही बनना,
     नही बनना मुझे इंसान, मा मुजे ...........